Last modified on 9 अप्रैल 2019, at 23:15

बुलबुल / अलेक्सान्दर पूश्किन / हरिवंश राय बच्चन

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:15, 9 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अलेक्सान्दर पूश्किन |अनुवादक=हर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ओ गुलाब की कली कुमारी,
मुस्कानों में क्या बन्धन ?
लतिकाओं में अटका रखतीं
यद्यपि तुम बुलबुल का मन ।

बन्दी बन, वह शरण तुम्हारी;
कर लो तुम इस पर अभिमान,
अन्धकार में दूर-दूर, पर,
गूँजा करता उसका गान !
 
अँग्रेज़ी से अनुवाद : हरिवंश राय बच्चन