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मोहिनी मुस्कान कर ले / उमेश कुमार राठी

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मन पखेरू उड़ गगन में मोहिनी मुस्कान कर ले
प्रीत के परिधान की अब पावनी पहचान कर ले

शाम का अवसान है परिदृश्य बंकिम देख ले तू
लालिमा खोने लगी वर्चस्व अंतिम देख ले तू
व्यस्त था पूरे दिवस पर अस्त पल में हो गया है
शक्ति का है पुंज दिनकर स्वत्व मद्धिम देख ले तू
डूबना अस्तित्व सबका सार्वभौमिक सत्य है ये
वक्त के दिनमान का आश्वस्त हो अनुमान कर ले...

दुष्ट कब संतुष्ट होता प्यार का सत्कार पाके
व्यक्ति कब आकृष्ट होता द्वार पर उपहार पाके
स्वर्थ में डूबा हुआ उपकार कब स्वीकार करता
भ्रष्ट मति अति भ्रष्ट होता और ज़्यादा प्यार पाके
शून्य के परिवेश में आवेश क्यों धारण किया है
मत रहो अनजान इतना ज्ञान से संज्ञान कर ले...

ज्वार से जगती विषमता सोचना सबको पड़ेगा
प्यार जब दिल में उमड़ता पोषना इसको पड़ेगा
नैन पुतली के निलय में स्वप्न आते दूरगामी
क्वाँर में होती चपलता मोड़ना मन को पड़ेगा
ज्ञान रूपी हिय सरित में स्नान करना है ज़रूरी
प्रेम का अनुदान करके आन का संधान कर ले...

जिंदगी का हर गुणक अब लग रहा है तानपूरा
साधना में लीन होकर कर दिया गुणगान पूरा
अर्थ सारे सार्थक हैं भाव से संचित किये हैं
रंग को अभिरंग करके कर लिया मधुपान पूरा
शब्द के आह्वान से ही कल्पना होती तरंगित
मीत अब उन्वान लिखके गीत का सम्मान कर ले