Last modified on 22 अप्रैल 2019, at 17:40

कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के / शकेब जलाली

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:40, 22 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शकेब जलाली |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGha...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कहाँ रुकेंगे मुसाफ़िर नए ज़मानों के
बदल रहा है जुनूँ ज़ाविये उड़ानों के ।

ये दिल का ज़ख़्म है इक रोज़ भर ही जाएगा
शिग़ाफ़ पुर नहीं होते फ़क़ट चट्टानों के ।

हवा के दश्त में तन्हाई का गुज़र ही नहीं
मेरे रफ़ीक़ हैं मुतरिब गए ज़मानों के ।

कभी हमारे नुकूशे क़दम को तरसेंगे
वो ही जो आज सितारे हैं आसमानों के ।