जीवन का व्याकरण
नहीं पढ़ा,
शायद,
इसीलिए --
सही अर्थों में
जीना नहीं आया !
आत्म-प्रकाशन में
असफल अभिव्यक्ति-सा
प्रभाव-शून्य बना रहा,
इसीलिए --
रात-दिन
घर-बाहर
अनमना रहा !
मैंने
जीवन-जगत व्यवहार के
विशिष्ट शब्दों
शब्द-रूपों
और उनके प्रयोगों का
ज्ञान हासिल नहीं किया,
इसीलिएµ
तथाकथित समाज ने
मुझे अपने में
शामिल नहीं किया !
मैंने नहीं सीखा
व्यक्ति-व्यक्ति में
भेद करना,
स्थूल और सूक्ष्म
अन्तर-प्रणाली की
वैज्ञानिकता
मेरी समझ में नहीं आयी,
जो कुछ कहा
वह
व्याख्या की परिधि में
नहीं समाया,
शायद,
इसीलिए मेरा कथन
किसी को नहीं भाया !
मैंने
जीवन का व्याकरण
नहीं पढ़ा,
शायद,
इसीलिए --
अन्यों की तरह
सुख-चैन का
जीना नहीं आया !
निरन्तर
जीवन की अभिधा में
पलता रहा,
लाक्षणिकता के
गूढ़ व्यंजना के
आडम्बर नहीं फैलाये,
बहु-प्रचलित कडवे तेल के दिये-सा
आले में
चुपचुप जलता रहा,
मुहावरेदानी के
रुपहले ट्यूब
तैल-लेपित दीवारों पर
नहीं रोशनाये,
शायद,
इसीलिए --
समाज का मन-रंजन नहीं हुआ
वांछित आवर्जन नहीं हुआ !
दुनिया की चमक-दमक में
डूबा-इठलाया नहीं,
वक्र ताल पर
ध्वनि-सिद्ध कोई गीत
गाया नहीं,
अलंकार-सज्जित पात्र में
रीति-बद्ध ढंग से
जीवन का रस
पीना नहीं आया !
मैंने
जीवन का व्याकरण
नहीं पढ़ा,
शायद,
इसीलिए --
निपुण विदग्धों के समकक्ष
जीना नहीं आया !