Last modified on 23 अप्रैल 2019, at 15:44

सवाल और जवाब / बाल गंगाधर 'बागी'

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:44, 23 अप्रैल 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाल गंगाधर 'बागी' |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितने जवाब, सवालों में दफन होंगे
जाति व्यवस्था पे लोग जब गरम होंगे
लेकिन यह चक्र सदियों से चला आया है
जो क्रांति की आवाज़ से ख़तम होंगे

उनका जनेऊ हमारे फांसी का फंदा है
मगर इन्हीं धागों से बुने कफ़न होंगे
सुमिरनी जोंक की तरह चिपकता है
मगर खून से उनके ही लथपथ होंगे

सिर्फ यह गंगा नहाके पाप धोते हैं
फिर न शोषण करने में अड़चन होंगे
और सवर्ग की कल्पना गढ़ रखे हैं
अब न तीर्थ के दुकान व कुंभ होंगे

सामंती-संस्कृति शासन की सियासत है
ये जाति सत्ता समानता न कोई भ्रम होंगे
जो शोषण धार्मिक जटिलता मंे पाल रखे हैं
इससे अब किसी पे फिर न अब जुल्म होंगे

ये शोषण की खेती में हल चलाते हैं
इस शोषण की फसल कभी न हम होंगे
हम बाग़ी हैं बग़ावत की खेती करते हैं
हमारी ज़मीं से बाग़ी कभी न कम होंगे