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बिजलियों सी चमक है तेरी / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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बिजलियों सी चमक है तेरी
ज़ाफ़रानी महक है तेरी
दिल पे छाई धनक है तिरी
ज़ाफ़रानी महक है तिरी
मेरे ख़्वाबों ख़यालों में बस
चूड़ियों की खनक है तिरी
ख़ामुशी, बाग़ में अब कहाँ
क़ुमरियों सी चहक है तिरी
सीप सागर के तुझ पर फ़िदा
मोतियों में दमक है तिरी
शाख़े-गुल का हो जिस पर गुमां
वो कमर की लचक है तिरी
धूप करती है तुझको सलाम
चांदनी में झलक है तिरी
तेरे दिल में मिरा दर्द है
मेरे दिल में कसक है तिरी
सच तो ये है मुझे ऐ 'रक़ीब'
अब रक़ाबत पे शक है तिरी