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जनमन की याद में हड़प्पा / बाल गंगाधर 'बागी'

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भड़क रही है आग लहू की
क्रांति धार की स्याही मंे
अब सभ्यता की गरिमा है
कुछ यादों की परछाई में

जलता है इतिहास का सीना
ब्राह्मणी के अत्याचारों से
जलता है भारत का अम्बर
सभ्यता की उन पहचानों से

नील गगन का अंतरमन
खुशी हर नर व नारी का
रंगीन सितारों की महफिल
संगीत अमर सच्चाई का

क्या नहीं था भारत का गौरव
जनमन के अरमानों से
क्या नहीं थी जीवन की सरिता
जो बहती रोज चट्टानों से

दर्शन है दुनिया से उत्तम
सद् मार्ग अहिंसा गौतम का
रणबीर भूमि एकलव्य जहाँ
शिक्षा शंबूक के संतति का

यह मिट्टी भी सोना जैसी
सरताज हिमालय का उद्गम
द्रविणी रंग रस धार जहाँ
कश्मीर भूमि पावन-पावन

विकसित संस्कृति के आंगन में
हर मधुर हवाएं बहती थी
स्पंदन की बांहों से लिपट
किलकारी भरके हंसती थी

जन आदिवंश का मात्र प्रेम
माँ का आंचल अन अंतिम था
जिसकी सरहद न खत्म हुई
वह गौरव अतीत हमारा था

सभ्यता रही न अब आदि रही
मनुवाद की कपटी चालों से
वीराना मंजर आज हुआ
हर नींव की ईंट हिलाने से