भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मोॅन बड़ी पछताबै / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:14, 1 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रह्मदेव कुमार |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोॅन बड़ी पछताबै, हाय गे माय, अनपढ़ रहलां गे।
अनपढ़ रहलां गे, हाय गे माय अनपढ़ रहलां गे।।

पढ़ै-लिखै के समय जबेॅ छेलै, नहियें पढ़लां गे
हाय गे माय नहियें लिखलां गे
हाय गे माय नहियें सीखलां गे।
खेली-कूदी केॅ, हाय गे माय आपनों समय बितैलां गे।।

घरोॅ में तहूँ राखलैं गे मैय्यो, काम करबाय केॅ गे।
हाय गे माय फुसलाय-फुसलाय केॅ गे
हाय गे माय डराय-धमकाय केॅ गे।
बेटी केॅ अनपढ़ राखलैं हाय गे माय, बेटा पढ़ाय केॅ गे।।

पिया हमरोॅ पढ़लोॅ गे मैयो, ई ए बी ए गे
हाय गे माय बी ए -सी ए गे
नै जानौं कीए-कीए गे।
हमरा बड़ी चिढ़ाबै हाय गे माय, हँसिये-हँसिये गे।।

नैहरा में नाहीं पढ़ली गे मैयो, आबेॅ ससुररिया गे।
हाय गे माय हम्मेॅ पढ़भै गे
हाय गे माय हम्मेॅ लिखबै गे।
साक्षरता-अभियान में सीखी केॅ हाय गे माय,
हम्मेॅ हँसबै गे।।
हाय गे माय खुशी मन रहबै गे।
मोॅन बड़ी पछताबै, हाय गे माय, अनपढ़ रहलां गे।