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भावे ना एको गहनमां / ब्रह्मदेव कुमार

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भावै नै एकोॅ गहना सजना, सिलौठ हमरा मंगाय देॅ हो।
शिक्षा से शोभतै तन मन सजना, किताब हमरा मंगाय देॅ हो।

चुनरी-लहंगा मनहुँ नै भावे
ललका फुदनमां जुट्टी ना भावे।
नै पिन्हबै हाथों में कंगन सजना, सिलौठ हमरा मंगाय देॅ हो।

पढ़भै-लिखबै हम्मेॅ, खुशी मनैबै
छोटोॅ परिवार सेॅ, घोॅर सजैबै।
दूर करी अंगुठा निशान सजना, सिलौठ हमरा मंगाय देॅ हो।

भाय-बहिन, बच्चा-जवान
संग-संग पढ़बै, दैकेॅ धियान।
देशोॅ केॅ बनैबै महान सजना, सिलौठ हमरा मंगाय देॅ हो।

साक्षरता अभियान सेॅ सीखबै सब गियान
पढ़भै-लिखबै हम्मेॅ सब मजदूर-किसान।
रहबै नै मूरख नादान सजना, सिलौठ हमरा मंगाय देॅ हो।

जागलोॅ देशोॅ के शिक्षा छै पहचान
एकता-अखंडता सें होतै देश महान।
पोसी राखबै मन में ई भाव सजना, सिलौठ हमरा मंगाय देॅ हो।