तड़पै मोरा परणमां / ब्रह्मदेव कुमार
राधा- गोरे-गोरे बहियाँ गे बहिना, कारे शोभै गोदनमां रे जान।
जान, गोदना रे देखी तड़पै मोरा परणमां रे जान।
ललिता- कीये तोरा दुख छौ गे बहिना, कैन्हें तड़पौ परणमां रे जान।
जान, कीये तोरोॅ दुखबा के करनमां रे जान।
राधा- पढ़ै लिखै के किंछा गे बहिना, मनमां भेलै सपनमां रे जान।
जान, पढ़ै रे बिना बेरथ भेलै जीवनमां रे जान।
ललिता- जिनगी के सपना गे बहिना, देहोॅ के गहनमां रे जान।
जान, पढ़ना रे लिखना बहियाँ के गोदनमां रे जान।
राधा- देखी-देखी बहियाँ गे बहिना, मनोॅ में उठै जलनमां रे जान।
जान, लिखै रे बिना गोदना भेलै कफनमां रे जान।
ललिता- पढ़ै के लिखै के गे बहिना, मनोॅ में करौ परणमां रे जान।
जान, चललै साक्षरता के अभियनमां रे जान।
राधा- एके मास पढ़भै गे बहिना, दूये मास पढ़भै रे जान।
जान, तेसरी रे मास मिटतै अंगुठा निशनमां रे जान।
ललिता- हिरदै में विचारैं गे बहिना, पिया जी के पतिया रे जान।
जान, केना केॅ पढ़भै-लिखबै दिल के बतिया रे जान।
राधा- देखी-देखी पतिया गे बहिना, बरसै मोरा नयनमां रे जान।
जान, कौनी विधातां लिखलकै मोरा करमियां रे जान।
ललिता- चलें गे बहिना पढ़ै-लिखै में, लगैबै तन-मन दूनोॅ रे जान।
जान, धन्य-धन्य साक्षरता के अभियनमां रे जान।