भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सुनोॅ सजनी / ब्रह्मदेव कुमार

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:55, 3 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ब्रह्मदेव कुमार |अनुवादक= }} {{KKCatAngikaRac...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साजन- सुनोॅ-सुनोॅ-सुनोॅ हमरोॅ बात सजनी
चलोॅ पढ़ै-लिखै लेॅ हे।
पढ़ै-लिखै लेॅ चलोॅ, पढ़ै-लिखै लेॅ हे
पढ़ी-लिखी दुनियाँ के रीत सजनी
चलोॅ-चलोॅ सीखै लेॅ हे।

सजनी- सुनोॅ-सुनोॅ-सुनोॅ हमरोॅ बात सजन
हो पढ़ै-लिखै के हो।
पढ़ै-लिखै के, हो पढ़ै-लिखै के हो
आबेॅ कहाँ रहलै ऊ बात सजन
हो पढ़ै-लिखै के हो।

साजन- हम्हूँ टिप्पा छाप सजनी, तहूँ टिप्पा छाप हे
अनपढ़ रहना छै, सबसे बड़ोॅ पाप हे।
टिप्पा के मिटैबै निशानी हे सजनी
चलोॅ पढ़ै-लिखै लेॅ हे।

सजनी- केना केॅ जैबै हम्में पढ़ै लेॅ इस्कूल
लाजोॅ-शरम सेॅ मरी जैबै हम्में हो।
आबेॅ रहलै कहाँ उमर हे सजन,
हो पढ़ै-लिखै के हो।

साजन- साक्षरता-केन्द्र गाम्हैं-टोला में खुललै
काॅपी-किताब आरो सिलोठोॅ जे मिललै।
गाम्हैं के पढ़ुवां पढ़ाबै सजनी,
चलोॅ पढ़ै-लिखै लेॅ हे।

सजनी- दिन भरी काम करी, थकै छै देहिया
साँझै सेॅ निन्दिया सेॅ, झूपै छै अखिया।
आबेॅ कहाँ रहलै समईया सजन,
हो पढ़ै-लिखै के हो।

साजन- जेना हवा, पानी आरो खाना जरूरी
सुन्दर देहिया पेॅ गहना जरूरी।
वैन्हें छै पढ़ना जरूरी हे सजनी
चलोॅ पढ़ै-लिखै लेॅ हे।

सजनी- सुन्दर देहिया पेॅ एकोॅ नै गहना
बोलोॅ-बोलोॅ पिया कैह्या पुरतै सपना।
बितलोॅ जाय छै, हमरोॅ जिनगी सजन
हो पढ़ै-लिखै के हो।

साजन- पढ़ी-लिखी दुन्हूँ मिली नौकरी करबै हे
जिनगी में ऐतै खुशी बेकारी मिटतै हे
कीनी देभौं नथुनी, झुलनी हे सजनी
चलोॅ पढ़ै-लिखै लेॅ हे।

सजनी- पिया तोरोॅ बात जे लागै, हिरदय छूवै हो
पढ़ै-लिखै के बात सच-सच लागै हो
मनोॅ में उठै छै हिलोर सजन
हो पढ़ै-लिखै के हो।

साजन- सुनोॅ-सुनोॅ-सुनोॅ हमरोॅ बात सजनी
चलोॅ पढ़ै-लिखै लेॅ हो।
सजनी-चलोॅ-चलोॅ चलोॅ-चलोॅ चलोॅ-चलोॅ सजन
जैबै पढ़ै-लिखै लेॅ हो।