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हाथ / कविता कानन / रंजना वर्मा
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आज
उग आया है
मेरे आँगन के
गमले में
एक हाथ ।
मैं इसे
रोज़ सींचती हूँ
अपने प्यार से
अपनी ममता से
जिस से
यह बढ़े
आगे
और आगे.
उन्नति की
सीढियाँ चढ़े
ऊपर
और ऊपर.
परन्तु
बहुत प्रयत्न
करने पर भी
नहीं पढ़ पाती मैं
इस पर लिखी
लकीरों को ।