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जिंदगी की राह / कविता कानन / रंजना वर्मा

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सायकिल के
दो पहिये
सन्तुलित
मजबूत
सहायक
एक दूसरे के ...
पथ दर्शक
पथ प्रवर्तक।
एक पहिया भी
डगमगा जाये
बिगड़ जाये बैलेंस।
थोड़ी दूर चलना भी
हो मुश्किल।
रहे साथ
रहे संतुलन
तो लम्बी
राहें भी हों
बेहद आसान।
जैसे दो हमसफ़र
पति और पत्नी
एक दूसरे के
सहायक , पूरक
गाड़ी के
दो पहियों जैसे
सन्तुलित
सहयोगी
तो जीवन पथ सुगम
सहज , सरस।
एक भी यदि
डगमगा जाये
साथ छोड़ दे
तो पहुँचना कठिन
मंजिल तक..
एकाकी
तनहा , नीरस
जंग करता
जीवन से
डगमगाता
लड़खड़ाता
उठता , गिरता
अकेला
विवश.....