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पर्दा / कविता कानन / रंजना वर्मा

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पर्दा
प्रतीक है
बन्धन का
पांव में बंधी
जंजीर का
जो रोकती है
आगे बढ़ने से।
यदि यह उचित है
जरूरी है
या मजबूरी है
तो स्त्रियों के लिये ही क्यों ?
उठो बहनों
हटा दो पर्दा
तोड़ दो
प्रतिबंधों की जंजीर
रखो नयी नजीर
आँखें खोलो
देखो नजर उठा कर
सारा जमाना
स्वागत करेगा तुम्हारा
जगाओ
अपना आत्म विश्वास
बाहों में भर लो
अनन्त आकाश ....