भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिवाकर / कविता कानन / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:57, 5 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिवाकर !
अजब है तू
और तेरा प्यार ।
सुबह उषा के साथ
जागता है
भोर के संग खेलता है
और फिर
सारे दिन
हजारों किरणों के साथ
मनाता है
रंगरेलियाँ
या फिर
घन बालाओं के साथ
करता है
अटखेलियाँ ।
दिन ढलते ही
चल पड़ता है
पश्चिम की ओर
थाम कर
सन्ध्या सुंदरी का हाथ
और फिर
गर्क हो जाता है
सांवरी निशा की
बाहों में ।
ये कैसा है
तेरा प्रीति भण्डार
जो लुटाता रहता
उन्मुक्त हो कर
सभी पर
फिर भी
नहीं होता रिक्त .....