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दो हृदय / कविता कानन / रंजना वर्मा
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प्यार पगे
दो हृदय
उड़ चले गगन की ओर
हो कर उन्मुक्त
सबसे वियुक्त
बांध कर
सतरंगी कामनाओं के
ढेरों गुब्बारे
छू लेंगे मानो
अनन्त के छोर ।
ये कामनाएं
असीम भावनाएँ
ले जायेंगी इन्हें
न जाने किस ओर।
मिलेगा इन्हें
कोई सुन्दर, सुभग उपवन
सुनहरा भविष्य
या फिर
जलते अंगारे
उफनती नदी
या शुष्क रेगिस्तान।
छिपा है
सब कुछ
भविष्य के गर्भ में ।
नहीं है कोई चिंता
सामने है
केवल वर्तमान
दो दिल
और सतरंगी स्वप्नों के
ढेर सारे
रंगीन गुब्बारे ।
बचना
कहीं फूट न जायें.....