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पन्ने / कविता कानन / रंजना वर्मा

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डायरी खोलते ही
फड़फड़ाने लगते हैं पन्ने
चिड़िया के
मासूम बच्चों की तरह
जो उड़ने के लिये
तोल रहे हैं
अपने पर ।
पन्ने
जो स्वयं में
समेटे हुए हैं
एक सम्पूर्ण इतिहास
समाहित हैं
जिन में
बचपन की
मासूम यादें
कैशोर्य की
मधुर कल्पनायें
यौवन के
मीठे सपने
और
अनुभवों की
चेहरे पर पड़ीं
असंख्य सिलवटें ।
मेरे न रहने पर भी
जब कभी
कोई खोलेगा डायरी
यूँ ही फड़फड़ाएंगे
ये पन्ने
चिड़िया के बच्चों की तरह
किन्तु
उड़ने नहीं देगी वह इन्हें
तब तक
जब तक कि
परिपक्व न हो जाये
उनकी उड़ान ......