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रावण और हम / कविता कानन / रंजना वर्मा

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हम ही बनाते हैं
पूरे वर्ष
रावण को
अपने दब्बू
और तटस्थ
व्यवहार से .
अनदेखा करते हैं
उसके दुर्व्यवहार को
भुला देते हैं
उसके द्वारा किये गये
अनाचार को .
बढ़ावा देते हैं
उसकी लोलुप
प्रवृत्ति को
और फिर एक दिन
जला देते हैं
उसके पुतले को.
भूल जाते हैं
की इस तरह
रावण नहीं मरता ..
अमर कर दिया है उसे
हमने ही
अपनी कायरता से
और अब
कर रहे हैं इंतज़ार
किसी राम का .
जरा सोचिये
क्या हम
नहीं बन सकते राम ?