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भेद / कविता कानन / रंजना वर्मा

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मन की बातें
मन मे रहें
यही है उचित।
बाहर आकर
बन जायेंगे
विभीषण
घर के भेदी ।
आँसू
अच्छे लगते हैं
आँखों के घर में ।
मत निकलने दो
उन्हें बाहर
कह देंगे
हर किसी से
मन के भेद।