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गहरे और हरे समुद्र में / सुरेन्द्र स्निग्ध
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हरियाली की
अजस्त्र धारा में नहाकर
साफ़ सुथरी कविता की तरह
दिख रहे हैं त्रिपुरा के गाँव
छोटे-छोटे घर
छोटे-छोटे बच्चों की तरह
जँगल के झुरमुटों से
झाँकते हैं ।
उमग रहा है हरापन
इसे सँगीत की गति देते हैं
झूमते हुए दूर तक फैले धान के खेत ।
जंगलों, खेतों और
जगह-जगह झाँकते सफ़ेद तालों से
पैदा हो रही है लोक लय
लोक राग और श्रम की अजस्त्र धारा
से नहा रही है त्रिपुरा की धरती
इसकी लय पर
थिरक रहे हैं
आदिवासी युवक युवतियों के पाँव ।
गहरे और हरे रँग का समुद्र है
त्रिपुरा का शहर अगरतला
इस गहरे और हरे समुद्र में
असँख्य लाल सूरजों की तरह
दमक रहे हैं रक्ताभ झण्डे ।
नहीं,
कभी नहीं
इस समुद्र में कभी नहीं उतर पाएगा
निशाचर अन्धकार ।