भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्यास / कविता कानन / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:52, 6 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=कवि...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तृषित मयूर
भूला नर्तन
सूखा मधुवन ।
न रही हरियाली
न मेघों के
आगमन की आस
बच रही है
केवल प्यास ।
फिर भी
बैठ सूखी डाल पर
कर रहा पुकार -
निर्मम बादल !
आ भी जा
इस बार
लेकर जलधार ।