Last modified on 7 मई 2019, at 11:39

नासदीय सूक्त, ऋग्वेद - 10 / 129 / 5 / कुमार मुकुल

Kumar mukul (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:39, 7 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= कुमार मुकुल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> फे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

फेन
बरहम के मन में
उपजल कामना
सउंसे बरहमांड में
फैल गइल
आउर प्रकृति तत्‍व से
मिल के
सृष्टि रचे के
शुरूआत कइलक ॥5॥

तिरश्चीनो विततो रश्मिरेषामधः स्विदासी३दुपरि स्विदासी३त्।
रेतोधा आसन्महिमान आसन्त्स्वधा अवस्तात्प्रयतिः परस्तात् ॥5॥