हैं हवायें लिख रही फिर प्रीति के पैग़ाम।
ला रही बरसात चिट्ठी फिर हमारे नाम॥
दर्द के पन्ने पुराने
आज दूँ मैं फाड़ ,
फिर कपोतों की उड़ानें
दूँ गगन में काढ़।
रोक रखने में इन्हें हैं पींजरे नाकाम।
ला रही बरसात चिट्ठी फिर हमारे नाम॥
जुगनुओं ने चाँदनी
थोड़ी चुरा ली है ,
शान दिखलाते मगर
कैसी निराली है।
कौन जाने हो भला क्या दम्भ का अंजाम।
फूल थोड़े बहा लाया
बाढ़ का पानी
बाँटता उन्मुक्त जैसे
हो बड़ा दानी
झूठ तो है झूठ कब अच्छा हुआ परिणाम॥