भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नकलची बंदर / फुलवारी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:00, 9 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=फुल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बड़ा नकलची मेरा बंदर।
घुस आता कमरे के अंदर॥
मैं खाता तो वह भी खाता।
मैं हँसता तो दाँत दिखाता॥
नौकर ने बीड़ी सुलगाई।
उस ने पकड़ी दियासलाई॥
बीड़ी ले कर सुट्टा मारा।
लगा खांसने पर बेचारा॥