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सलोना रूप मैया का/ साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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सलोना रूप मैया का
मेरे मन को लुभाता है।
चरण रज चूम कर माँ की
जमाना झूम जाता है॥
सदा रहती माँ पर्वत पर
बना आवास है ऊँचा
झुका कर शीश जो जाये
वहाँ तक पहुँच पाता है॥
सजाये शीश पर वेणी ,
लगाये केश में गजरा ;
चुनरिया लाल तन पर -
ओढ़ना सबको सुहाता है॥
किये सिंगार सोलह माँ
विराजें सिंह के ऊपर
दलन नित्य शत्रु का करना
सभी भक्तों को भाता है॥