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आज प्रिय के प्यार से यह मांग लूँ भर / साँझ सुरमयी / रंजना वर्मा

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आज प्रिय के प्यार से यह माँग लूँ भर
क्या पता यह मिलन रुत ठहरे कि जाये॥

कौन किस क्षण किस तरह
मिल जायेगा जाता न जाना।
घोर ग्रीषम बाद आया
है मधुर सावन सुहाना।

बद्ध कर लूं आज बाहों में सुघर आकाश अपना
क्या पता मधु - दूत यह ठहरे कि जाये॥

कह रहा मन आज कोकिल
कण्ठ से निज स्वर मिला लूँ,
कल्पनाएँ कर मिलन की
नेह नयनों में सजा लूँ।

बना लूँ बन्दी तुझे उर की अनोखी वादियों में
क्या पता उर का पथिक ठहरे कि जाये॥

कब कहाँ किस ओर से
आ जाये मनवांछित चितेरा,
एक पल में हों पराये
तन बदन मन श्वांस मेरा।

बीच चौराहे खड़ा पागल हृदय यह सोचता है
क्या पता मधुमास अब ठहरे कि जाये॥