भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तीर्थ-यात्रा की चढ़ाई में / योगेन्द्र दत्त शर्मा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:17, 12 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= योगेन्द्र दत्त शर्मा |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीर्थ-यात्रा की चढ़ाई में
पीठ पर जो हमें ढोता है
वह हमारी ज़िन्दगी के सब
हाँ, वही तो पाप धोता है !

शिखर पर हम गर्व से बनते
जहाँ अपने मुँह मियाँ मिट्ठू
वहाँ पहुँचाता हमें वह ही
हम जिसे कहते महज पिट्ठू
उस सफलता का सही श्रेयी
हाँ, वही मज़दूर होता है !

सीढ़ियाँ चढ़ने-उतरने का
उसे जो अभ्यास होता है
वस्तुतः वह तप, कड़ी मेहनत
भूख का इतिहास होता है
वह हमारे नेह-धागे में
पुण्य के मनके पिरोता है !

सेतुबन्धों के प्रयोजन में
राम की नन्ही गिलहरी-सा
जागता रहता सतत अविचल
वह सदा निर्द्वन्द्व प्रहरी-सा
हाँ, उसी के आसरे अक्सर
भक्त भी निश्चिन्त सोता है !

त्याग क्या, तप क्या, तपस्या क्या
सभी से अनजान है बिल्कुल
पर हमारी प्रार्थनाओं के
रचा करता वह निरन्तर पुल
पुण्य का जो फल हमें मिलता
वह उसी के बीज बोता है !