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वेदना: एक दृष्टिकोण / महेन्द्र भटनागर

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हृदय में दर्द है
तो मुसकराओ !

दर्द यदि
अभिव्यक्त —
मुख पर एक हलकी-सी
शिकन के रूप में भी,

या सजगता की
तनिक पहचान से उभरे
दमन के रूप में भी,

निंद्य है !
धिक् है !
स्खलित पौरुष्य !

उर में वेदना है
तो सहज कुछ इस तरह गाओ
कि अनुमिति तक न हो उसकी
किसी को !

सिक्त मधुजा कण्ठ से
उल्लास गाओ !
पीत पतझर की
तनिक भी खड़खड़ाहट हो नहीं
मधुमास गाओ !
सिसकियों को
तलघरों में बन्द कर
नव नूपुरों की
गूँजती झनकार गाओ !
शून्य जीवन की
व्यथा-बोझिल उदासी भूलकर
अविराम हँसती गहगहाती
ज़िन्दगी गाओ !
महत् वरदान-सा जो प्राप्त
वह अनमोल
जीवन-गंधमादन से महकता
प्यार गाओ !

यदि हृदय में दर्द है
तो मुसकराओ !
दूधिया
सितप्रभ
रुपहली
ज्योत्स्ना भर मुसकराओ !