भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उल्टे रस्ते / रणजीत

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:10, 15 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रणजीत |अनुवादक= |संग्रह=बिगड़ती ह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उल्टे रस्ते चल पड़ा अपना हिन्दुस्तान
पाँच दशक में बन गया आधा इंगलिस्तान
गर्दन तक रिण में डूबा यह देश पुराना
बड़ा कठिन है अब बिकने से इसे बचाना
उपनिवेश था एक कम्पनी का यह पहले
अब दुक्की पर लगा रहे सब अपने दहले
अन्धे नेताओं ने बिठाया इसका भट्ठा
गले विश्व व्यापार संघ का बांधा पट्टा
विषम खेल है नियम उन्हीं के, वे निर्णायक
वे ही प्रतियोगी हैं, वे ही भाग्य विधायक
शुरू हुआ अब खुल्ला खेल फर्रूखाबादी
देखें कब तक बचती है अपनी आज़ादी