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कश-म-कश / महेन्द्र भटनागर

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बरसों से नहीं देखा —
सूर्योदय
सूर्यास्त
चाँद-तारों से भरा आकाश,
नहीं देखा
बरसों से नहीं देखा !

कलियों को चटकते,
फूलों को महकते
डालियों पर झूमते,
तितलियों-मधुमक्खियों को

चूमते !

बरसों से नहीं देखा !

मेह में न्हाया न बरसों से
पुर-जोश कोई गीत भी गाया

न बरसों से!

न देखे
एक क्षण भी
मेहँदी से महमहाते हाथ गदराए,
महावर से रँगे
झनकारते
दो - पैर

भरमाए !

न देखे
आह, बरसों से !
कुछ इस क़दर
उलझा रहा
ज़िन्दगी की कश-म-कश में —
देखना
महसूसना
जैसे तनिक भी
था न वश में !