भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

परवाह करने वाले / विनोद विक्रम केसी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:18, 18 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विनोद विक्रम केसी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाचा !
क्यों इतने उदास हो तुम
तुम्हे हँसाने के लिए
इतने सारे इन्तज़ाम किए हैं
दुनिया ने

सांसद वृन्द संसद में करते हैं हँगामा
इतने मनोरँजक लोकतन्त्र के भी
मज़े नहीं लेते तुम

अख़बारों ने
तुम्हे समर्पित किए है
दैनिक कार्टून कॉलम

फिर भी हँसी नही उछलती
तुम्हारे होंठों में
तुम्हारे दाँतों में
चाचा, क्या बीमार हो तुम ?
मनोचिकित्सक को दिखलाया क्या ?

क्यों नही हँसते तुम
तुम्हे हँसाने के लिए
खिलखिलाता वह कपिल शर्मा
एक साल का सौ करोड़ लेता है
अपने लिए न सही
कम से कम उसके लिए हँसा करो
ताकि चलती रहे उसकी रोज़ी-रोटी शानदार

तुम्हे पता नहीं है क्या
कितना अच्छा होता है हँसना
सेहत के लिए
स्वास्थ्य-विज्ञान कहता है
जो हँसता है ख़ूब
वह जीता है लम्बी उम्र
तुम्हारे होंठों में है
तुम्हारे दाँतों में है तुम्हारी दीर्घायु
मुस्कुराया करो
ख़ुश रहा करो

ऐसे कौन से
दर्द के पर्वत के नीचे दबे हो तुम
ऐसा क्या हुआ
हँसना ही भूल गए

यही न
कि इस साल फ़सल अच्छी नहीं हुई
बेकारी से तंग आकर तुम्हारे बड़े बेटे ने
तीन बार आत्महत्या की कोशिश की

यही न
कि किसी रँगीन मिज़ाज के बड़े शहर ने
तुम्हारी बेटी को दफ़ना दिया अपने आलिंगन मे

यही न
कि तुम्हारी बीमार पत्नी ख़ून की उल्टियाँ करती है
तुमसे छुप-छुपकर

अब क्या कहें तुमसे ?
तुम बैठे हो दिल छोटा करके
इतनी छोटी छोटी बातों मे
और हँसी तो जैसे तुमने जलाकर कर दी है राख

हम तुम्हें
इतना ज़ुल्म ढाने नही देंगे ख़ुद पर
तुम्हे हँसना होगा
अपने पीले दाँत दुनिया को
दिखाने से डरते हो क्या ?
हमारी कम्पनी इसी का तो हल लाई है
आधुनिक तकनीक और आयुर्वेद को मिलाकर
हमने बनाया है अद्भुत टूथपेस्ट
इसलिए
कि चाचा, हम करते हैं तुम्हारी हँसी की परवाह ।