Last modified on 18 मई 2019, at 23:44

चिट्ठियाँ भिजवा रहा है गाँव / माहेश्वर तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:44, 18 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=माहेश्वर तिवारी |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चिट्ठियाँ भिजवा रहा है गाँव
अब घर लौट आओ ।

थरथराती गन्ध
पहले बौर की
कहने लगी है
याद माँ के हाथ
पहले कौर की
कहने लगी है

थक चुके होंगे सफ़र में पाँव
अब घर लौट आओ ।