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माँ - 1 / अंजना टंडन

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बचाना जानती है माँ,

बारिशों के लिए कुछ धूप
अंधेरों के लिए कुछ उजास,

बचा ही लेती है हर बार,

तंगी के दिनों के लिए कुछ अच्छे दिन
बुरे समय में भी कुछ अच्छी तारिखें,

कैसे तैसे बचाती रही हर बार,

टूटता चूल्हा
बँटती मुँडेर
मुठ्ठी भर इज्जत,

बस नहीं बचा पाई

चार बूँद आँसू,
पिता की विदाई पर

सब रोते रहे
माँ ना रोई,

रेत रेत होती माँ पत्थर हो गई।