Last modified on 19 मई 2019, at 13:10

प्रेम - 1 / अंजना टंडन

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:10, 19 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजना टंडन |अनुवादक= }} {{KKCatKavita}} <poem> प्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

प्रेम
जो रूप मुझ से लिखा गया वो सहज नैसर्गिक स्वभाव था,

प्रेम
जो रूप तुम से पढ़ा गया
वो दुसाध्य निज सम्भावना थी,

प्रेम की यह दुहरी प्रकृति,

एक तरफ
स्त्री पुरूष के आतंक से परे
मानवियता सम्प्रेषित करने की आकांक्षा,

तो दूसरी तरफ
घोर आदिम संवेग के पकते
निज गोपन में उन्मुक्त रमण की विवशता ने,
एक नैसर्गिक दैविक गुण को
अभिशप्त बनैले अनुभव में बदल दिया,

गूँगे को गुड़ से मधुमेह होने पर
इलाज में सिर्फ नजर धोनी चाहिए।