भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परिचय / अंजना टंडन
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:31, 19 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजना टंडन |अनुवादक= }} {{KKCatKavita}} <poem> अब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अब तक
हर देह के ताने बाने पर
स्थित हैं
जुलाहे की ऊँगलियों के निशान
बस थोड़ा सा अंदर
रूह तक
जा धँसे है,
विश्वास ना हो
तो कभी
किसी की
रूह की दीवारों पर
हाथ रख देखना
तुम्हारे दस्ताने का माप भी
शर्तिया उसके जितना निकलेगा।