भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़हरीला / विश्वासी एक्का
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:26, 19 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विश्वासी एक्का |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
समन्दर
घहराता, बलखाता ।
कतारबद्ध लोग
तैयार खड़े हैं
डूबने, बह जाने को
मैं रोकना चाहती हूँ उन्हें ।
पता नहीं,
मुझे रोकने का
अधिकार है या नहीं ।