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मेरे दोस्त, मेरे प्यार / निकिता नैथानी

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मेरे दोस्त ! मेरे प्यार !
किसी एक दिन जब
घनघोर वर्षा के बाद
बादल समेट लेंगे अपने आँसू
जब थम जाएँगी गुस्से में सब कुछ तबाह करती हवाएँ
और फिर से छूने लगेंगी मेरे गालों को
जब बुझने लगेगी जँगलों में धधकती आग
जब लोग नोचना छोड़ देंगे धरती की छातियों को
और बन्द हो जाएगा उनसे रिसता हुआ ख़ून
जब मासूम आँखे बेबसी से तकना छोड़ देंगी गिरे हुए रोटी के टुकड़ों को
जब माँ की सदियों से उदास आँखे मुस्कुरा उठेंगी ...

मेरे प्रिय !
उस दिन बैठूँगी मैं किसी पेड़ के नीचे
जिसके आसपास खिले होंगे मुस्कुराते हुए फूल
और लिखूँगी एक प्रेमपत्र
और उसमें करूँगी हर उस पल का ज़िक्र
जब हम साथ रहे या नहीं रहे ...

कि तुम्हारी आँखों में देखते हुए
कितनी बार भुलाया है मैंने ख़ुद को
कि तुम्हारा स्पर्श
कैसे चेतना का सँचार करता था मेरे भीतर
कि तुम्हारी बाहों में सिमटना
और तुम्हारे होंठों को अपने माथे पर महसूस करना
कोई अलौकिक घटना थी
कि मेरे बिखरे हुए जीवन को
कैसे समेट लेते थे तुम्हारे शब्द
और हर वो बात जो अनकही सी रह गई कहीं मगर ...

मेरे दोस्त !
हो सकता है वो दिन कभी ना आए
हो सकता है न लिख पाऊँ मै कोई प्रेमपत्र
या यूँ कहें कि मै रहूँ ही ना कहीं

पर मेरे प्रिय !
तुम निराश न होना, उम्मीद मत छोड़ना
क्योंकि जब-जब बरसेगा पानी और चलेंगी हवाएँ
तो तुम्हें महसूस होगी मेरे शब्दों की महक …।