तुम्हीं सब लिख रहे हो
वेद पुराण तुमने ही लिखे हैं 
तब अबकी बार उस कला पर भी लिखो 
जिसमें तुम्हारे पूर्वजों ने छीन कर निवाला 
हजारों लोगों को मार डाला 
लिखो, कैसे सूखा भूसा खाकर 
मरते रहे बैल और तुम्हारी चमड़ी 
होती रही, लगातार मोटी 
लिखोगे क्या 
लिखो, कैसे धर्म के नाम पर 
पाखण्ड और अन्याय की एक बड़ी दुनिया रची तुमने 
स्वयं को बना लिया पूजनीय 
लिखो तुम्हारा पिल्ला 
कूकुर होने से पहले कैसे हुआ ‘पाँव लागी महाराज’ 
तुम लिख नहीं सकते अपने कुकृत्य 
तुम्हें सच से डर लगता है
लिखना चाहोगे क्या अन्याय
तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते सीधी आलोचना 
तुम उस मूर्ख को कालीदास बना सकते हो 
जो उस डाली को काट रहा हो जिसपर वह बैठा हो 
तुम उस कामुक व्यक्ति को 
बना सकते हो तुम्हारी संस्कृति का रखवाला
जो नदी में मुर्दे को मुर्दा न समझ पाया हो 
उस हत्यारे को भगवान 
जिसने एक कौम को चालीस बार धरती से ख़त्म किया
क्या तुम लिख पाओगे
अपने पूर्वजों का कुकृत्य 
जिसने अपनी वर्ण श्रेष्ठता के लिए सिर्फ हत्यायें की 
जानता हूँ तुम नहीं लिखोगे 
एक अघोरी आशंका ने घेर लिया है तुम्हें 
कहीं माँगना न पड़े आरक्षण 
इसीलिए भभक रहे हो असमय
हमारी कविता तुम्हें लगती है नकारात्मक 
हमारे विचार तुम्हें सांप की तरह डस लेते हैं 
हमारी सोच तुम्हें सताती है 
क्योंकि तुम्हारी जारज संताने 
आजादी के सत्तर साल बाद भी भोग रही हैं 
दूसरों का हक और तुम उनके खिलाफ नहीं लिख सकते 
तुम लिखोगे आरक्षण के खिलाफ 
उठती आवाजों के खिलाफ 
एक जुट होते वामपंथ पर 
तुम अपने भाई को नहीं लिख सकते 
तुम्हारे कारण दुनिया नरक बनी हुई है 
ठेकेदारी में उनको भी हिस्सा दो 
जो मजदूर हैं आजतक 
पर तुम नहीं लिखोगे
कोई ऐसा सच जो तुम्हारी जड़े खोदता हो 
वेद पुराण कविता कहानी बहुत लिखी तुमने
तुम कभी नहीं लिख सकते यथार्थ 
नहीं लिख सकते
क्योंकि तुम्हारी जात ही छोटी है