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हाथ आकर फिसल गई ख़ुशबू / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

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हाथ आकर फिसल गई ख़ुशबू
दोस्त पाला बदल गई ख़ुशबू।

उनके चेहरे से नूर गायब है
जैसे गुल से निकल गई ख़ुशबू।

होश अब तक न लौटकर आया
चाल कैसी ये चल गई ख़ुशबू।

उन पे इतना गुरुर हावी था
उनको छूते ही जल गई ख़ुशबू।

पांव रक्खा जो बाग़ में हंसकर
बाग़ पूरा निकल गई ख़ुशबू।

रुख़ बदलने लगी हवा देखो
दांव देकर उछल गई ख़ुशबू।

प्यार 'विश्वास' हंस पड़ा जिस पल
फूल महके, मचल गई ख़ुशबू।