भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घूमता है बस्तर भी / पूनम वासम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:28, 22 मई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम वासम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिन्दी शब्दों के अर्थ उपलब्ध हैं। शब्द पर डबल क्लिक करें। अन्य शब्दों पर कार्य जारी है।

पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि पृथ्वी का घूमना तय क्रम है
अन्धेरे के बाद उजाले के लिए

कि घूमती है पृथ्वी तो घूमता है
संग-संग बस्तर भी
पृथ्वी की धुरी पर !

पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर तेज़ी से
कि घूमता है बस्तर भी उतनी ही तेज़ी से
इसकी-उसकी तिज़ोरी में
गणतन्त्र का उपहास उड़ाता,
काले धन की तरह
छिपता-छिपाता ।

पहाड़ों की तलहटी और जंगलों की ओट से
जब भी झाँकता है,
दबोच लिया जाता है
किसी मेमने की तरह !

पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि घूमता है बस्तर भी
इसकी-उसकी कहानियों में
चापड़ा, लान्दा, सल्फ़ी, घोटुल, चित्रकूट के
बहते पानी में बनती इन्द्रधनुष की परछाइयों-सा
जब भी कोशिश की बस्तर ने
सूरज से सीधे साँठ-गाँठ की...
निचोड़कर सारा रस
तेन्दू, साल, बीज की टहनियों पर तब-तब
टाँग दिया गया बस्तर को सूखने के लिए !

पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि घूमता है बस्तर भी देश-विदेश में
उतनी ही तेज़ी से
किसी अजायबघर की तरह...
जिसे देखा, सुना और पढ़ा तो जा सकता है
किसी रोचक क़िस्से-कहानी में
बिना कुछ कहे निःशब्द होकर !

पृथ्वी घूमती है अपनी धुरी पर
कि घूमता है बस्तर भी
अपने सीने में छुपाए पक्षपात का ख़ूनी खँज़र !
न जाने वह कौनसी ओज़ोन परत है...
जिसने ढँक रखा है
बस्तर के हिस्से का
सारा उजला सबेरा ?