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सँग में लेकर शूल मिली / तारकेश्वरी तरु 'सुधि'
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Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 27 मई 2019 का अवतरण
मेरी राहें हरदम मुझसे, सँग में लेकर शूल मिली
जब भी चाहा उड़कर देखूँ, हवा सदा प्रतिकूल मिली
सम्मुख़ था इक कोरा मुख़ड़ा, नयनों में आवाज़ नहीं
मैने सोचा पढकर देखूँ, पर मुखड़े पर धूल मिली
आखिर कब तक घुटकर जीएँ, दिल कहता है आज मुझे
लब ने जब कुछ कहना चाहा, बस बातों को तूल मिली
दिल में कुछ उम्मीदें रखकर, राही मीलों दूर चले
नज़र उठी, पाया वीराना, मंजिल गर्ते फूल मिली
बहकावे में आकर जिसने, सिर फोड़ा था अपनों का
तह तक जब पहुँचे थे सबकी, मामूली—सी भूल मिली
उड़ जायेगी दूर गगन में, भूल जगत को प्रियतम सँग
अंत समय में उसको आख़िर, ये इक दुआ कुबूल मिली
साँझ गये मैं बैठी छत पर, इक छोटी गठरी लेकर
खुशबू का दोशाला ओढ़े, सब यादें माकूल मिली