Last modified on 10 अगस्त 2008, at 14:36

क्यूँ भटकता है जा—ब—जा बाबा / सुरेश चन्द्र शौक़

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:36, 10 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरेश चन्द्र शौक़ |संग्रह = आँच / सुरेश चन्द्र शौक़ }} [[Categ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्यूँ भटकता है जा—ब—जा बाबा

अपने दिल में दिया जगा बाबा


इस नगर में सभी सवाली हैं

दे रहा है किसे सदा बाबा


मोह—माया ने डस लिया है मुझे

कोई मंतर, कोई दवा बाबा


बंद हैं दिल के सारे दरवाज़े

किस तरह आएगी हवा बाबा


क्यूँ ख़ुदाई से बेनियाज़ है वो

है ख़ुदाई का गर ख़ुदा बाबा


जीते—जी दिल को चैन मिल जाए

यह न होगा न यह हुआ बाबा


जोग लेने से कुछ नहीं हासिल

दिल न जब तक हो जोगिया बाबा


क्या ख़बर किसके दर से क्या मिल जाए

तू अलख तो ज़रा जगा बाबा


छोड़ सब फ़ल्सफ़े, रमा धूनी

भर चिलम और और दम लगा बाबा


अब हमारा इलाज नामुम्किन

क्या दवा और क्या दुआ बाबा


दुश्मने—जाँ सही वफ़ा ऐ ‘शौक़’

इससे मुँह मोड़ लूँ मैं ना बाबा.



सदा=आवाज़;बेनियाज़=नि:स्पृह फ़ल्सफ़ा= दर्शन,फ़िलासफ़ी.