बीता हुआ दिन / काएसिन कुलिएव / सुधीर सक्सेना
बीते हुए दिन, तुमसे कोई गिला नहीं मुझे
शिकायत नहीं कि तुम मेरे लिए हर्ष लाए या विषाद,
मेरे लिए तुम निधि बने या बीत गए वृथा,
मैं कृतज्ञ हूँ, बहुत-बहुत आभार तुम्हारा ।
परवाह नहीं कि कैसा दिन था वह, सच कहता हूँ
मैंने सहर्ष अगवानी की, आरम्भ से दिनान्त तक
काम किया अहर्निश, थाह ली अपने विचारों की
मैं कृतज्ञ हूँ, बहुत-बहुत आभार तुम्हारा ।
मैं सोचता हूँ, निहारते हुए सूर्यास्त की लालिमा
कि क्या कुछ गया साथ तुम्हारे, सच-सच बोलूँ —
मैंने जिया जीभर, देखा नील गगन नीलाँचल
मैं कृतज्ञ हूँ, बहुत-बहुत आभार तुम्हारा ।
बीत गए दिन । जब मैं देखता हूँ पीछे मुड़कर
भोर और साँझ को मेघाच्छादित था आकाश
माफ़ करना, अब फिर नहीं होगा हमारा मिलाप
मैं कृतज्ञ हूँ, बहुत-बहुत आभार तुम्हारा ।
ओ बीते दिन मैं फिर से दुहराता हूँ
मायने नहीं कि तुम हर्ष भरे थे या विषादमय,
बेहद दुख भरा था पर तुमसे बिछोह का क्षण
मैं कृतज्ञ हूँ तुम आए, आभार तुम्हारा ।
जीवन क्षणिक है और समय अनन्त
मैंने जीवन का क्षणांंश ही दिया तुम्हें
अलविदा — भाव विह्वल हो कहता हूँ मैं
मैं कृतज्ञ हूँ, बहुत-बहुत आभार तुम्हारा ।
अलविदा, मैं खोले रहूँगा द्वार तुम्हारे जाने के बाद भी
अलविदा, तुम्हारी उष्णता, अलविदा पाखियो !
जो कुछ भी लाए तुम याद आएगा मुझे बारम्बार
ओ बीते दिन ! मैं कृतज्ञ हूँ, बहुत-बहुत आभार तुम्हारा ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुधीर सक्सेना