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अंतिम राजकीय तर्क / स्तेफान स्पेन्डर

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बन्दूकें धन के अन्तिम कारण के हिज्जे बताती हैं
बसन्त में पहाड़ों पर सीसे के अक्षरों में
लेकिन जैतून के पेड़ों के नीचे मरा पड़ा वो लड़का
अभी बच्चा ही था और बहुत अनाड़ी भी
उनकी महती आँखों के ध्यान में आने के लिए ।
वो तो चुम्बन के लिए बेहतर निशाना था ।

जब वो ज़िन्दा था, मिलों की ऊँची चिमनियों ने उसे कभी नहीं बुलाया ।
ना ही रेस्तराँ के शीशों के दरवाज़े घूमे उसे अन्दर लेने के लिए ।
उसका नाम कभी अख़बारों में नहीं आया ।
दुनिया ने अपनी पारम्परिक दीवार बनाए रक्खी
मृतकों के चारों तरफ़ और अपने सोने को भी गहरे दबाए रक्खा,
जबकि उसकी ज़िन्दगी, शेयर बाज़ार की अगोचर अफ़वाह की तरह, बाहर भटकती रही ।

अरे, उसने अपनी टोपी खेल-खेल में ही फेंक दी
एक दिन जब हवा ने पेड़ों से पँखुड़ियाँ फेंकीं ।
फूलहीन दीवार से बन्दूकें फूट पड़ीं,
मशीनगन के गुस्से ने सारी घास काट डाली;
झण्डे और पत्तियाँ गिरने लगे हाथों और शाखों से;
ऊनी टोपी बबूल में सड़ती रही ।

उसकी ज़िन्दगी पर ग़ौर करो जिसकी कोई क़ीमत नहीं थी
रोज़गार में, होटलों के रजिस्टर में, ख़बरों के दस्तावेज़ों में
ग़ौर करो । दस हज़ार में एक गोली एक आदमी को मारती है ।
पूछो । क्या इतना खर्चा जायज़ था
इतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िन्दगी पर
जो जैतून के पेड़ों के नीचे पड़ी है, ओ दुनिया, ओ मौत ?

मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल एकलव्य