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शराबी शाम बहकाये तो क्या हो / कुमार नयन

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शराबी शाम बहकाये तो क्या हो
कहीं दिल लड़खड़ा जाये तो क्या हो।

ये पूछो अहले-दिल भंवरों से जाकर
कली गुलशन में शरमाये तो क्या हो।

अभी तो सिर्फ तुम हो और मैं हूँ
ज़माना बीच में आये तो क्या हो।

बहुत मुश्किल हैं राहें ज़िन्दगी की
कोई हमराह मिल जाये तो क्या हो।

ज़रा सोचो तो नफ़रत करने वालो
महब्बत रंग दिखलाए तो क्या हो।

महब्बत को बचाने के लिए जब
कोई झूठी क़सम खाये तो क्या हो।

उठा हो दर्द जब ज़ोरों से दिल में
तू ऐसे में ग़ज़ल गाये तो क्या हो।