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ब्यूनस आयरस / होर्खे लुइस बोर्खेस / अनिल जनविजय

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कभी मैं तुम्हें ढूँढ़ रहा था बेहद, ओ मेरी खुशी !
वहाँ, खेतों और मैदानों पर जहाँ उतरती है शाम,
जहाँ खड़े हैं सर्द देवदार और लहराती है जुही
लौहबाड़ के पार उस बाग़ में सोते हुए सरेआम ।

तुम पलेर्मो में थे, गहरे अन्धविश्वास फैले हैं जहाँ,
चाकू की धार और ताश की गड्डियों के थे वे दिन ।
और झलक रही थी फीकी सी चमक सुनहरी वहाँ,
दरवाज़े के पास पड़े हथौड़े के हत्थे पर उस छिन ।

तेरी अँगूठी वाली उँगली की छाया छलक रही थी’
वह अहाते में पड़ी थी, दक्षिण की ओर झुकी हुई ।
टहल रही थी छाया घनी वृत्ताकार पुलक रही थी,
सूर्यास्त का समय था, मन में गहरी धुकधुकी हुई ।

तू दिल में बसी, मेरी क़िस्मत, मन में छुपी हुई है,
मेरे विदा होने से पहले तू मेरे भीतर रुकी हुई है।