भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अतीत की खोल में राजा / सुभाष राय

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:23, 12 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुभाष राय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavit...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सोने की चिड़िया फड़फड़ाती रहती है उसके जेहन में
भविष्य से घबड़ाया, अतीत से सम्मोहित राजा
अच्छे दिनों की चर्चा करते-करते लौट जाता है
इतिहास में, अपने पुरखों के रक्त में

वह सिंहासन पर बैठा है, जय-जयकार के बीच
आस्था और विश्वास की रक्षा के लिए उत्साहित हैं समर्थक
साइंस की किताबें फाड़ी और जलाई जा रही हैं
तर्क को कुफ़्र घोषित कर दिया गया है और काफ़िरों के क़त्ल का हुक्म है

सज़ा देने की पुरानी तरक़ीबें आजमाई जा रही हैं
लाठियों से गला घोंट देना, पीट-पीट कर मार देना
पत्थरों से कुचल देना, हाथ-पाँव काट देना

राजा लोगों से मिलता है, उनकी ख़ुशियों के बारे में पूछता है
सबको हिदायत है, राजा से मिलें तो मुस्कराएँ
अन्न से ज़्यादा ज़रूरी है ख़ुशी, इसलिए ख़ुश दिखें

मुनादी करा दी गई है, राजा जो बोलेगा, वह न्याय होगाए
और किसी को कुछ भी बोलने की ज़रूरत नहीं
जिन्हें लिखने की कला आती है, प्रशस्तियाँ लिखें
जन गण मन अधिनायक की जय लिखें या फिर कुछ न लिखें

उसने तीन-चौथाई देश जीत लिया है
अविजित राज्यों में प्रशिक्षित घोड़े रवाना कर दिए गए हैं
वह अपनी जमात का एक राष्ट्र बनाना चाहता है
बाक़ी लोग चाहें तो पाला बदल लें या ख़ुदक़ुशी कर लें
भीड़ निकल पड़ी है विधर्मियों की पहचान के लिए
अफ़वाह है कि विरोधी तख़्तापलट की साज़िश रच रहे हैं
उन सब हरामज़ादों को पीट-पीट कर मार दिया जाएगा

औरतों से कहा गया है बेवजह चौखट न लाँघें
जिसने भी अवज्ञा की, उन पर भूखे कुत्ते छोड़ दिए जाएँगे
कई सन्त दिखने वाले लोग चौराहों पर नँगा कर रहे स्त्रियों को
और पूरी निर्ममता से फाड़ रहे उनका स्त्रीत्व

साधुओं की पँगत बैठी है भोजनातुर
मँगाए गए हैं अश्व बलि के लिए
बड़े-बड़े कढ़ाहों में पक रहे बछड़े
कुछ घायल गायें खड़ी हैं निरीह अपना ही रक्त चाटते हुए
कोई उनके पास जाने का साहस नहीं कर रहा
इसमें जान गँवा देने का जोख़िम है

प्रजा को साफ़-साफ़ कह दिया गया है
राजा सबसे बड़ा सच है, याद रखें, बाक़ी सब भूल जाएँ
राजा स्मृति की मोटी खोल में जाकर बैठ गया है
और इतिहास लौट आया है वर्तमान में
अपने सम्पूर्ण पाखण्ड, अपनी समूची क्रूरता और बर्बरता के साथ ।