Last modified on 11 अगस्त 2008, at 21:22

जीवन / संतरण / महेन्द्र भटनागर

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:22, 11 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संतरण / महेन्द्र भटनागर }} जीवन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,

कल झर जायगा !

इसलिए,
हर पल विरल
परिपूर्ण हो रस-रंग से,
मधु-प्यार से !
डोलता अविरल रहे हर उर
उमंगों के उमड़ते ज्वार से !

एक दिन, आख़िर,
चमकती हर किरण बुझ जायगी...
और
चारों ओर
बस, गहरा अँधेरा छायगा !
जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,
कल झर जाएगा !

मत लगाओ द्वार अधरों के
दमकती दूधिया मुसकान पर,
हो नहीं प्रतिबंध कोई
प्राण-वीणा पर थिरकते
ज़िन्दगी के गान पर !

एक दिन
उड़ जायगा सब ;
फिर न वापस आयगा !
जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रह है आज,
कल झर जायगा !