भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नए किरदार में ढल के मिलेंगे / राज़िक़ अंसारी

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:23, 15 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>नए किरद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नए किरदार में ढल के मिलेंगे
पुराने दोस्त हैं, जल के मिलेंगे

तुम्हारी क़द्र व क़ीमत घट चुकी है
तुम्हारे भाव अब हलके मिलेंगे

बहादुर हो तो ख़ाली हाथ आना
अगर ये बात है, चल के मिलेंगे

अगर खोदे गए पिछले ज़माने
हज़ारों सीन मक़तल के मिलेंगे

तुम अपनी हैसियत ख़ुद जान लोगे
अगर फोटो तुम्हें कल के मिलेंगे