Last modified on 15 जून 2019, at 15:45

रात पहागे / ध्रुव कुमार वर्मा

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:45, 15 जून 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ध्रुव कुमार वर्मा |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खिड़की कोती ले झांकत हे अंजोर
सभी रात पहागे।
तोर अंगना के फूल हा महकय
डारा मन मां चिरई चहकय।
खुलगे हावय, दरवाजा अऊ खोर
संगी रात पहागे॥1॥

रद्दा रेंगे के करव तियारी
जाएं बर हे दुरिहा भारी
कमजोरहा ला चलो ते अगोर
सगी रात पहागे॥2॥

धरती हा लइकोरी होगे
आगू ले जादा गोरी होगे।
खेत खार मां नाचय मन के मोर
संगी रात पहागे॥3॥

कुंभकरण के रात पहाइस,
चौदा बरस बनवास सिराइस।
आगे देवारी, तेल म बाती बोर
संगी रात रहागे॥4॥